इतिहास को व्यक्त तथा चित्रित करने की भारत की अपनी शैली तथा दृष्टि रही है, वहीं पर हमें पढ़ाया जाने वाला इतिहास यूरोपीय नजरिये का है।
श्री काशी विश्वनाथ जी के इतिहास के बारे में लिंग पुराण, स्कंध पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण तथा पद्म पुराण में 'काशी खण्ड' के संदर्भ में विस्तृत वर्णन मिलता है।
वैदिक काल से औरंगजेब के पूर्व तक काशी विश्वनाथ जी के विध्वंस तथा निर्माण का इतिहास बड़ा ही उथल-पुथल भरा रहा है।
शिवपुराण के अनुसार काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना भगवान् विष्णु ने विधिवत् पूजन करके काशी में की है। 'काशी खण्ड' के अनुसार ज्ञानवापी के उत्तर में श्री काशी विश्वनाथ जी की स्थिति सुनिश्चित है।
ईसा पूर्व पहली शती : सम्राट विक्रमादित्य ने काशी में पांच मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया था, जिसमें श्री विश्वनाथ मंदिर भी था।
राजघाट उत्खनन से प्राप्त अविमुत्तेश्वर भट्टारक व देव-देव स्वामिन अंकित मुद्रा में काशी के अविमुत्तेश्वर (काशी विश्वनाथ मंदिर) का स्पष्ट प्रमाण है।
630 ईस्वी : युवान च्यांग के अनुसार काशी में 100 देव मंदिर हैं, जिसमें से 20 नगर में हैं, एक मंदिर जिसे हिन्दू बहुत श्रद्धा-आस्था रखते हैं, इस 100 फुट ऊंचे पत्थर के मंदिर की पूजा होती है, निश्चित ही यह विश्वनाथ मंदिर ही है।
1033 (हिजरी) : अरबी इतिहासकार 'फरिश्ता' के अनुसार महमूद गज़नवी के भांजे सालार मसूद व नियाल तिगिन ने रामजन्मभूमि व काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने की कसमें खाई और सेना लेकर चल पड़ा। दिल्ली के समीप से होता हुआ बाराबंकी (सीतापुर) तक पहुंचते हुए 100 मंदिरों को तोड़ा।
किन्तु रामजन्मभूमि पर राजा सुहेल देव की सेना ने सालार मसूद को उसकी सेना सहित बहराइच जिले के सरयू तट पर मौत की नींद सुला दिया। नियाल तिगिन विशाल सेना के साथ काशी पहुँचा किन्तु हिन्दुओं के प्रचंड प्रहार से पराजित हो गया और वह थोड़ी लूटमार के पश्चात ही मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ।
1194 ईस्वी : मुहम्मद गोरी ने आक्रामक करके विश्वनाथ मंदिर सहित 1000 मंदिरों को काशी में तोड़कर कुतुबुद्दीन को शासक नियुक्त कर चला गया, इधर जब विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने की खबर फैली तो गाँव -गांव में प्रतिरोध की ज्वाला भड़क उठी और हिन्दुओं ने काशी को स्वतंत्र करा कर विश्वनाथ मंदिर के भग्नावशेष का पूजन आरंभ कर दिया।
1296 इसवी : इस समय विशेश्वर मंदिर अपने भव्य व विशाल स्वरूप में पुनः तैयार हो चुका था।
1296 से 1447 ईस्वी : सन् -1447 इसवी में जौनपुर के शर्की वंश के सुल्तान महमूद शाह ने काशी पर आक्रमण कर विश्वनाथ मंदिर सहित सभी मंदिरों को ध्वस्त करा दिया।
सन्-1585 : राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट ने विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण ज्ञानवापी स्थल पर कराया।
सन्-1632 : में शाहजहां ने काशी के मंदिरों को तोड़ने के लिए अपने चाचा 'भाई जाद' को भेजा वाराणसी के 76 मंदिरों को तोड़कर नष्ट कर दिया गया किन्तु युद्ध में मुगलों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। हजारों-हजार नगर वासियों ने अपना बलिदान देकर काशी विश्वनाथ मंदिर को बचा लिया।
श्री काशी विश्वनाथ जी के मंदिर के विध्वंस तथा निर्माण का इतिहास बड़ा ही उथल-पुथल भरा रहा मुस्लिम शासक मंदिर को तोड़ते रहते तो हिन्दू अपने अराध्य देवाधि देव महादेव के मंदिर को पुनर्निर्माण करते रहते।
सन्-1669,18 अप्रैल : औरंगजेब ने फरमान भेंजा कि बनारस के सभी मंदिर ध्वस्त कर दिए जाए और जितनी भी संस्कृत की पाठशालाएं उनको भी बन्द कर दी जाय। आदेश का पालन हुआ, मुस्लिम सेना ने आक्रामण किया, दस दिनों तक बनारस की गलियों में भयानक युद्ध होता रहा किन्तु मंदिर को ढहाने में सफलता न मिल सकी। काशी के बाल-वृद्ध, नारी सभी ने अपना बलिदान दिया, मंदिर के सभी महंत लड़ाई में लड़ते हुए मारे गये।
चुनार किले से तोप मंगवाकर ही मंदिर को ढहाया जा सका और उस स्थान पर मस्जिद बनवायी गयी किन्तु पुरा मंदिर न तोड़ा जा सका, जिसका एक बड़ा पश्चिमी भाग आज भी अवशेष के रूप में विद्यमान है।
सन्-1669, 2 सितंबर को बादशाह औरंगजेब को इत्तला- सूचना मिली कि उसके फरमान के अनुसार विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर उस पर (कथित ज्ञानवापी) मस्जिद का निर्माण करा दिया गया है।
नमः पार्वती पतये हर हर महादेव !